सुषम बेदी : एक परिचय
सुषम बेदी का जन्म 1 जुलाई 1945 को पंजाब के फिरोज़पुर ज़िले में हुआ। उन्होंने अपनी बी.ए. तथा एम. ए की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ कॉलेज में पूरी की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से एम.फिल. किया। ‘हिंदी नाटक: प्रयोग के संदर्भ में’ विषय पर उन्होंने 1979 में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से पीएच. डी की उपाधि प्राप्त की। रचनाकार होने के साथ-साथ उनकी प्रतिष्ठा गंभीर अकादमिक, शिक्षाविद् एवं अभिनेत्री के रूप में भी रही है। उन्होंने 1966 में अध्यापन का आरंभ दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में किया। 1974 में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के हिंदी विभाग में नियुक्त हो गयीं और बाद में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के MEALAC —मिडल ईस्टर्न एशियन लैंग्वेज एंड कल्चर डिपार्टमेंट में हिंदी भाषा और साहित्य की प्रोफेसर रहीं। वहाँ से सेवानिवृत्त होने के बाद न्यूयॉर्क के सिटी कॉलेज में हिंदी साहित्य पढ़ा रहीं थीं तथा कोलंबिया यूनिवर्सिटी में भी वे प्रोफेसर एमेरिता थीं। प्राध्यापक के रूप में उन्होंने बहुत से लोगों को हिंदी सिखाने का काम किया और हिंदी भाषा तथा साहित्य में उनकी रुचि जगाई।
अध्यापन के अतिरिक्त वे पत्रकारिता तथा मीडिया के क्षेत्र से सम्बद्ध रही हैं। भारत में रहते हुए वे रेडियो और दूरदर्शन से जुड़ी रहीं। बहुत कम उम्र से ही (1957 से) वे लखनऊ रेडियो पर नाटकों में भाग लेती थीं। ब्रसल्स में रहते हुए (1974-1979) हिंदी के वरिष्ठ रचनाकार नवभारत टाइम्स के तत्कालीन संपादक अज्ञेय जी के कहने पर सुषम जी ने बेल्जियम के सांस्कृतिक जीवन पर नवभारत टाइम्स के लिए लेखन किया। इसी तरह अमेरिका में रहते हुए वे बीबीसी के लिए हर हफ्ते एक कार्यक्रम किया करती थीं जिसका शीर्षक था ‘लेटर्स फ्रॉम एब्रॉड’। सुषम जी को अभिनय का भी बहुत शौक था और वे 1962 से 1972 तक नियमित ढंग से अभिनेत्री के रूप में दूरदर्शन में नाटकों एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़ी रहीं। उन्होंने अमेरिका के लोकप्रिय टीवी शो ‘ट्रू क्राइम: न्यू यॉर्क सिटी’, ‘थर्ड वॉच’, ‘लॉ एंड ऑर्डर: स्पेशल विक्टिम्स यूनिट’ तथा 2002 में बनी फिल्म ‘द गुरु’ और 1999 में बनी ‘ABCD’ अभिनय किया।
यूँ तो सुषम जी ने स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपनी बातचीत में मुझे बताया कि दसवीं कक्षा में ही उन्होंने एक उपन्यास लिखा था और कॉलेज के दिनों में हिंदी की प्रसिद्ध कवयित्री उनकी प्राध्यापक थीं जो उन्हें विश्विद्यालयी स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेने को प्रेरित करती रहती थीं लेकिन विधिवत्त ढंग से लेखन और प्रकाशन की शुरुआत बाद में हुई। उन्होंने बताया की उनकी पहली कहानी ‘चिड़िया और चील’ थी लेकिन सबसे पहले प्रकाशित हुई ‘जमी बर्फ का कवच’। उन्होंने यह कहानी हिंदी की प्रसिद्ध कथा पत्रिका ‘कहानी’ में भेजी और उसके संपादक श्रीपतराय ने स्वीकार करते हुए उन्हें एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया था कि ‘लिखती रहना, लिखने से हाथ खुल जाता है’। यह वाक्य उनके लिए लिखने की प्रेरणा बना और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मददगार हुआ। अपने चार दशक से अधिक के लंबे रचनात्मक जीवन में उन्होंने अनेक कहानियाँ, उपन्यास तथा कविताओं की रचना की लेकिन उनकी ख्याति का मुख्य आधार उनकी कथात्मक रचनाएँ ही हैं। उनके उपन्यास हैं— हवन (1989), लौटना (1992), कतरा-दर-कतरा( लघु-उपन्यास 1994), इतर (1998), गाथा अमरबेल की (1999), नवाभूम की रस कथा (2002), मोर्चे (2009), मैंने नाता तोड़ा (2009), पानी केरा बुदबुदा (2017)। उनकी कहानियों के चार संकलन प्रकाशित हुए—चिड़िया और चील (1995), यादगारी कहानियाँ (2019), तीसरी आँख (2015), सड़क की लय (2017)। उनके कविता संग्रह हैं—शब्दों की खिड़कियाँ (2006) तथा इतिहास से बातचीत (संभावित प्रकाशन वर्ष 2006 से 2008। अभिव्यक्ति पोर्टल से इस पुस्तक की सूचना मिली है)। आलोचना की पुस्तक है—हिंदी नाट्य : प्रयोग के संदर्भ में (1984) तथा निबंध संग्रह है—हिंदी भाषा का भूमंडलीकरण (2012) तथा आरोह-अवरोह (2017)।
2018 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान के मोटूरी सत्यनारायण सम्मान से सम्मानित किया गया तथा 2007 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के प्रवासी साहित्य भूषण सम्मान से भी अलंकृत किया गया। 2006 में साहित्य अकादमी ने उन्हें हिंदी सेवा के लिए सम्मानित किया।
20 मार्च 2020 को उनका देहावसान न्यूयार्क में हो गया। रचनाकार के नाते यह उनके भौतिक जीवन का पटाक्षेप है लेकिन अपनी रचनाओं तथा अपनी बातों के माध्यम से वे सदा हमारे बीच रहेंगी।
Susham Bedi: An Introduction
Susham Bedi (1 July 1945 – 20 March 2020) was an Indian author of novels, short stories and poetry. She was a professor of Hindi language and literature at the department of Middle Eastern and Asian Languages and Cultures (MEALAC) at Columbia University, New York. She wrote predominantly about the experiences of Indians in the South Asian diaspora, focusing on psychological and ‘interior’ cultural conflicts. Unlike other prominent Indian American novelists she wrote mainly in Hindi rather than in English. She has been widely translated into English, French, Dutch and other languages by artists, academics, and students.
She was an actress in India in the 1960s and early 1970s. In the United States she appeared on such shows as True Crime: New York City, Third Watch, and Law & Order: Special Victims Unit, and in movies such as The Guru (2002) and ABCD (1999). She was the mother of the actress Purva Bedi.
In 2007 she was awarded 100,000 rupees by Uttar Pradesh Hindi Sansthan for her contributions to Hindi language and literature.
In January 2006 she was honored by Sahitya Academy in Delhi for her contributions to Hindi literature. She died on 20 March 2020 at the age of 74